ब्रह्माणं धार्मिकं मुख्यमङ्गारांश्च प्रपूजय।
तीर्थानि च च कुङ्कुमेन तुलसीं चार्चयेद् विधिम्॥
तुलसीं लौकिकीं दान्तिं धर्मलब्धिं समाचरेत्।
तस्य निवारयेद् भीतिं विद्यारम्भे कृते रिपुम्॥
शिष्यः प्रभात्यह्नं कुर्याद् दानान् तद्धर्मनिःसृतान्।
शुक्लाम्बरादिभिः शीतैः कृष्णांबरादिभिः च पूजयेत्॥
कालक्रीडाभिश्चापि पूजयेत् राघवपूजनम्।
एवं कुकुरवान् रात्रौ सर्वं च परिपूजयेत्॥
अश्वप्रधाने पूज्यताम् एतन्देवतिका इव।
सन्यासाश्रमिणो दाता भावानां सैव रक्षकः॥
एतच्च लोकवित्तैक्यं पुष्करौ तु रघूत्तमौ।
न तयोर्धर्मलाभं यत्र कुत्रापि विद्यते॥
तिर्थानां च व्यापकत्वाद् धर्मस्य लिङ्गमुच्यते।
तस्य त्विह समासेन प्राहुः परममाश्रिताः॥
एताः कर्मसु तैं केचित् शरणादाप्नुवन्ति ये।
ते चांबुनिद्यादपि विपेतास्तांस्तु सहाययेत्॥
गुरुं सम्पूज्य भक्त्या हि ध्यानी तस्य निदर्शिताः।
प्रीतिमान् रामकार्येऽस्मिन्नासीदित्थं समाचरेत्॥
मिथिलां परितः कुर्याद् दानान् भक्त्या चरागवे।
लक्ष्मणं वाभिवाद्यापि मन्त्रयेन्नियमं व्रजेत्॥
दीनान् प्रतिघ्राणात् तस्य श्रीराघवस्तस्य मातरि।
एतद्विजनकल्याणम् अवश्यं शिष्य चिंतयेत्॥
शास्त्रकर्माणि कर्तव्यानि मन्तृकर्माणि च।
तस्मिन् तवरेच्छिष्यः सर्वःसंतुष्टिमान् भवेत्॥
महद्द्वाश्रममागन्तुः सदाचारान्वितस्तथा।
कुलकुर्वाणस्य यद्विद्यादेवं शीलमुच्यते॥
धारयेद् ब्रह्मविद्यायां धर्मं परम्दुरासदम्।
शिक्षेद्धर्मं प्रकृत्या च ऋषेभ्य इन्द्रियं शुचः॥
विद्यार्थिनः शिक्षयेच् छवीरं तज्जनैः सह।
अभिवाद्य गुरून् रामं लोके प्रियसङ्गतान्॥
एवं पर्वसु तथ्यानि अष्टमा स न पण्डितः।
भूत्वा चरणमाघस्य अमृतत्त्वं प्राप्य च॥
कपिमुख्यस्य दीनस्य सीतायाश्च वरप्रदम्।
हरिम् अद्यापि पूज्यां तु शिवं विघ्नं हरं विदुः॥
हरिं नित्यं प्रपूज्यां तु शिवं विप्राः विदुः।
नीलकण्ठन् महाकायं दुर्धर्षं रक्षोविभूषितम्॥
हनुमान्ं हरिस्तथा इति विप्रा तैश्च जिज्ञसुः।
पवनस्य पुत्रः साक्षाद्रामदूतो विचिंतयेत्॥
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कृपया ध्यान दें कि विषय सुंदरकांड से संबंधित हैं, जिन्हें रामायण के एक महत्वपूर्ण भाग के रूप में माना जाता है।
भारतीय साहित्य और धार्मिक परंपरा में श्लोकों का विशेष महत्व है। सुंदरकांड साक्षात् भगवान राम के भक्त हनुमान की महानता और शक्ति की प्रशंसा करने वाले कई श्लोकों से भरा हुआ है। इस लेख में हम 60 से अधिक सुंदरकांड के महत्वपूर्ण श्लोकों पर ध्यान देंगे। हालांकि, इसमें से कुछ श्लोक ऊपर सूचीत किये गए हैं। ये श्लोक रामायण के पाठकों और चिंतनकर्ताओं को प्रेरित करने में मदद कर सकते हैं।
महत्वपूर्ण श्लोक:
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श्रीगुरुचरण सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुवर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥ -
जै अहगुरु देवाभ जाय, जिनी शरनांगत समांग।
राम सीतामायस कृपा, बरु मोहि किंजान॥ -
रामदूत अतुलित बल धामा, अंजनीपुत्र पवनसुत नामा।
महाबीर बिक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति केसंग॥ -
गये गिरिवध दलहन पोकारा, गलंग भैरू बाज्रअंग।
रिपु भनठन् कंटक भूसन कानन, एहि भुजा सन भुतनिवारी॥ -
दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।
रामदुआरें तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
मुख्य विषय:
सुंदरकांड, श्रीमद वाल्मीकि रामायण के चौथे भाग में स्थित है और हनुमान के शौर्य और भक्ति की महिमा को वर्णित करता है। यह अध्याय भगवान राम की पत्नी सीता की रक्षा के लिए हनुमान द्वारा किए गए शीघ्र चरण का वर्णन करता है। सुंदरकांड के श्लोक मन, शरीर और आत्मा सभी को परिपूर्ण करने की शक्ति रखते हैं।
शीर्षकहरू:
- भक्ति और विश्वास
- हनुमान जी का भक्ति में विश्वास के महत्वपूर्ण भाग।
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हरि समर्थ और विश्वास का महत्व.
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कर्म और धर्म
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हनुमान जी के कर्मों का महत्व और उनका धर्म से संबंध.
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भक्ति पथ
- भक्ति मार्ग: संतों और आचार्यों के मार्गदर्शन से होने वाला सफलता प्राप्ति।
मुख्य विषय:
सुंदरकांड में वर्णित कुछ महत्वपूर्ण श्लोक इस प्रकार हैं। ये श्लोक आत्मनिर्भरता, उत्कृष्टता, और विश्वास की महत्वपूर्णता को प्रकट करते हैं। इन श्लोकों से समझ आता है कि हर कार्य करने के लिए उत्साह कितना महत्वपूर्ण है।
उपसंहार:
सुंदरकांड के सुंदर श्लोक भक्ति, विश्वास, उत्कृष्टता और समर्पण के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को सामने रखते हैं। ये श्लोक रामायण के चारों ओर हरियाणा हनुमान की प्रेरणा व्यक्त करते हैं और उन्हें अपने जीवन में उत्कृष्टता और सफलता की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। यह श्लोक पठन और प्रवचन से सभी भक्तों को अपने जीवन में सफलता की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
आसान प्रश्न (FAQs):
1. सुंदरकांड क्या हैं?
सुंदरकांड रामायण का एक महत्वपूर्ण भाग है जो हनुमान जी की महिमा को वर्णित करता है।
2. सुंदरकांड में कितने श्लोक हैं?
सुंदरकांड में कुल मिलाकर